Saturday, August 22, 2009


विस्थापित तमिल नागरिक

अंतिम युद्ध में लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा.

श्रीलंका के एक वरिष्ठ तमिल नेता ने सरकार से विस्थापित नागरिकों को जल्दी से जल्दी उनके घरों तक वापस पहुँचाने और बसाने की अपील की है.

वी आनंदसांगरी ने शिविरों में रह रहे और युद्ध में बेघर हो चुके नागरिकों की स्थिति को अत्यंत भयानक बताया है.

तमिल यूनाइटेड लिबरेशन फ़्रंट के प्रमुख ने कहा कि लाखों लोग मुश्किल और ग़रीबी का सामना कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि उत्तरी श्रीलंका में तमिल नागरिकों के लिए बने शिविरों में भोजन, स्वास्थ्य और सफ़ाई की समस्याएँ हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि पिछले दिनों सरकार और तमिल विद्रोहियों के बीच हुए संघर्ष में क़रीब तीन लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है.

नागरिकों को विभिन्न शिविरों में रखा गया है जिनमें से ज़्यादातर उत्तरी शहर वावूनिवा के पास मेनिक फ़ार्म में स्थित हैं.

मेनिक फ़ार्म शिविरों को संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया का सबसे बड़ा विस्थापन शिविर बताया है. यहाँ युद्ध में विस्थापित हुए क़रीब दो लाख बीस हज़ार लोगों को रखा गया है.

स्वास्थ्य चिंताएं

यूएलएफ़ के नेता वी आनंदसांगरी श्रीलंका के कुछ उदारवादी तमिल राजनेताओं में से एक हैं. उन्होंने विद्रोहियों के ख़िलाफ़ उठाए गए सरकार के रुख़ का भरपूर समर्थन किया था.

नागरिकों ने तमिल विद्रोहियों के कब्ज़े वाले इलाके से भागते वक्त अपनी जान दाँव पर लगा दी क्योंकि विद्रोही उन पर गोलियाँ बरसा रहे थे. अगर सरकार को ऐसे लोगों पर तमिल विद्रोही होने का शक़ है तो दो ज़िलों- किलिनोच्ची और मुल्लेतिवू की सारी जनसंख्या ही तमिल विद्रोही होनी चाहिए

आनंदसांगरी ने बीबीसी से कहा, "शिविरों में रह रहे लोगों से मिली सूचनाओं के अनुसार कुछ क्षेत्रों की हालत अच्छी है जबकि बहुत सी जगहों की हालत भयानक है."

उनके अनुसार, "शिविरों में स्वास्थ्य, पानी और सफ़ाई की स्थिति भयानक है. पानी की कमी की वजह से बहुत से लोग कई-कई दिनों तक नहा नहीं पाते हैं. इससे बहुत से लोगों को त्वचा संबंधी बीमारियाँ हो गई हैं."

उन्होंने कहा, "गर्भवती महिलाएँ और नवजात शिशु शिविरों में तपती गर्मी की वजह से भयानक स्थितियों से गुज़र रहे हैं."

श्रीलंका की सरकार ने माना है कि कुछ शिविरों की हालत आदर्श नहीं है लेकिन कहा कि दूसरे अनेक शिविरों में सुविधाओं में सुधार किया गया है.

सरकार का कहना है कि पूरी तरह से भरे हुए शिविरों से भीड़ कम करने और नए शिविर बनाने के लिए कुछ ज़मीन भी आवंटित की गई है.

संयुक्त राष्ट्र और दूसरे सहायता संगठन भी मानवीय कार्यों को संपन्न कराने के लिए शिविरों तक बेहतर पहुँच की माँग कर रहे हैं.

पुनर्वास की योजना

श्रीलंका सरकार सहायता संगठनों को लेकर कुछ आशंकित है और उसने शिकायत की है कि इन संगठनों ने बीते दिनों में तमिल विद्रोहियों की मदद की है.

श्रीलंका का कहना है कि उनकी योजना छह महीनों के भीतर ज़्यादातर शरणार्थियों का पुनर्वास कराने की है.

तमिल विद्रोहियों के जाने-माने आलोचक आनंदसांगरी ने शिविर के हर तमिल नागरिक को संभावित तमिल विद्रोही की तरह देखने पर भी सरकार की खिंचाई की है.

श्रीलंका ने कहा है कि उन्हें शिविरों में छिपे प्रमुख तमिल विद्रोहियों को खोज निकालने के लिए समय की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा, "नागरिकों ने तमिल विद्रोहियों के कब्ज़े वाले इलाके से भागते वक्त अपनी जान दाँव पर लगा दी क्योंकि विद्रोही उन पर गोलियाँ बरसा रहे थे.

अगर सरकार को ऐसे लोगों पर तमिल विद्रोही होने का शक़ है तो दो ज़िलों- किलिनोच्ची और मुल्लेतिवू की सारी जनसंख्या ही तमिल विद्रोही होनी चाहिए."

श्रीलंका के अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें तो विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाले स्थान से आए लाखों-नागरिकों के अचानक आगमन पर ख़ुश होना चाहिए.

सरकार ने कहा कि उसे युद्ध के बाद पुनर्वास के काम के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद की भी ज़रूरत है.

टीयूएलएफ़ नेता ने कहा कि श्रीलंका के सुरक्षा बल विस्थापित नागरिकों के लिए अच्छा राहत कार्य कर रहे हैं लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह पर्याप्त नहीं है.

उन्होंने कहा, "विस्थापित नागरिकों की संख्या की वजह से सरकार अपने बल पर यह समस्या नहीं सुलझा सकती."

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